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प्राचीन भारत में रसायन का विकास

प्राचीन भारत में रसायन विज्ञान मुख्यतः दो उद्देश्यों से विकसित हुआ: आयुर्वेदिक चिकित्सा (लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए) और धातुकर्म (धातुओं के शुद्धिकरण, मिश्रधातु निर्माण और सोना बनाने की कोशिश के लिए)।

  • मूल सिद्धांत: इसका आधार यह दार्शनिक विश्वास था कि पारे (पारद) जैसे अशुद्ध धातु और अन्य पदार्थों को विशेष प्रक्रियाओं (संस्कार) द्वारा शुद्ध और परिवर्तित किया जा सकता है, उन्हें सोना बनाया जा सकता है या शरीर को लाभ पहुँचाने वाली दवाइयाँ (रसायन) तैयार की जा सकती हैं।
  • महत्वपूर्ण ग्रंथ: नागार्जुन का रसरत्नाकर, वाग्भट्ट का रसरत्नसमुच्चय, और गोविंद भागवत्पाद का रसहृदयतंत्र जैसे ग्रंथों में इस ज्ञान का विस्तार से वर्णन है।
  • योगदान: प्राचीन भारतीय रसायनज्ञों ने धातुओं के निष्कर्षण, शुद्धिकरण, संक्षारण रोकथाम, मिश्रधातु निर्माण (जैसे पीतल, कांसा) और खनिज-आधारित दवाइयों के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की।

द्रावणगण (Draavan Gana)

  • अर्थ: “द्रावण” का अर्थ है ‘पिघलाना’ या ‘गलाना’। “गण” का अर्थ है ‘समूह’।
  • परिभाषा: ये वे पदार्थों के समूह हैं जो धातुओं को पिघलाने (गला देने) की क्षमता रखते हैं। इन्हें फ्लक्स (Flux) या फ्यूज़िंग एजेंट के रूप में जाना जाता है।
  • उदाहरण: सज्जीखार (Potassium Nitrate), सोहागा (Borax), टंकण (Alum), सैंधव नमक (Rock Salt) आदि। ये अशुद्धियों (dross/slag) को अलग करके धातु के द्रवणांक (melting point) को कम करते हैं।

रसशास्त्र प्रवेशि (Rasashastra Praveshi)

  • अर्थ: “रसशास्त्र” में “प्रवेशि” का अर्थ है ‘प्रवेश’ या ‘परिचय’।
  • परिभाषा: यह शब्द आमतौर पर रसशास्त्र का एक प्रारंभिक या परिचयात्मक ग्रंथ/पाठ्यक्रम को दर्शाता है। यह नए छात्रों को इस विज्ञान की मूलभूत अवधारणाओं, सिद्धांतों, मूल पदार्थों और बुनियादी प्रक्रियाओं से परिचित कराता है।

कज्जली (Kajjali)

  • अर्थ: “कज्जल” का अर्थ है ‘काजल’ या ‘सूत’। इसे रसशास्त्र की “मातृभस्म” (Mother of all Preparations) माना जाता है।
  • परिभाषा: यह पारे (पारद) और गंधक (सulphur) की एक काली-काली यौगिक है जिसे बहुत बारीक पीसकर तैयार किया जाता है। यह रसशास्त्र की सबसे मौलिक और आधारभूत तैयारी है।
  • निर्माण: इसे पारद-गंधक योग के नाम से भी जाना जाता है। पारे और गंधक की निश्चित मात्रा को खरल (मortar and pestle) में घोटकर इस काली पाउडर की तैयारी की जाती है।
  • उपयोग: कज्जली स्वयं एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक दवा है, लेकिन इसका मुख्य उपयोग अन्य जटिल रस-तैयारियों (जैसे सिंदूर, मकरध्वज, आदि) के लिए आधार सामग्री के रूप में होता है।

कज्जली पर्याय (Kajjali Paryaya)

  • अर्थ: “पर्याय” का अर्थ है ‘पर्यायवाची’ या ‘समानार्थक शब्द’।
  • परिभाषा: यह शब्द कज्जली के अन्य नामों को संदर्भित करता है। चूंकि कज्जली रसशास्त्र की एक केंद्रीय preparation है, इसके कई नाम प्रचलित हैं।
  • उदाहरण (कज्जली के पर्याय):
    • रसगंधक: रस (पारा) और गंधक का योग।
    • शिलागंधक: शिला (पारा) और गंधक का योग।
    • हिंगुल: हालाँकि हिंगुल एक प्राकृतिक खनिज (Cinnabar, HgS) है, लेकिन कृत्रिम रूप से बनाई गई कज्जली को भी कभी-कभी इसी नाम से पुकारा जाता है।

रत्नधातुविज्ञान (Ratna Dhatu Vigyan)

  • अर्थ: “रत्न” (रत्न/मणि), “धातु” (धातु), और “विज्ञान” (विज्ञान) का संयोजन।
  • परिभाषा: यह रत्नों और धातुओं का समन्वित विज्ञान है। यह केवल रत्नों की पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि इस बात का अध्ययन है कि कैसे विभिन्न रत्नों और धातुओं का उपयोग औषधि निर्माण में किया जाता है। इसमें रत्नों को शुद्ध करने की प्रक्रियाएँ (रत्नशोधन), उन्हें भस्म के रूप में तैयार करना (रत्नभस्म), और उन्हें धातुओं (जैसे स्वर्णभस्म, राजतभस्म) के साथ मिलाकर शक्तिशाली दवाइयाँ बनाना शामिल है।

रसपङ्क (Rasapanka)

  • अर्थ: “रस” (पारा) और “पङ्क” (कीचड़/घोल)।
  • परिभाषा: यह पारे की एक विशिष्ट अर्द्ध-तरल या पेस्ट जैसी अवस्था है जो इसे विभिन्न हर्बल द्रव्यों के साथ प्रक्रिया (मर्दन) करने पर प्राप्त होती है। इस प्रक्रिया को पारे का “समुद्रीकरण” कहा जाता है, जिसका उद्देश्य पारे को विषैलेपन से मुक्त करके उसे औषधीय गुणों से युक्त बनाना होता है। रसपङ्क एक मध्यवर्ती अवस्था है।

रसेन्द्रविज्ञान (Rasendra Vigyan)

  • अर्थ: “रसेन्द्र” (रसों का राजा, अर्थात पारा) और “विज्ञान” (विज्ञान)।
  • परिभाषा: यह पारे का विज्ञान है। यह रसशास्त्र का वह विशिष्ट भाग है जो विशेष रूप से पारे (पारद) के गुणों, उसके शोधन (शोधन), संस्कार (जारण, मारण आदि), और उससे विभिन्न यौगिकों (जैसे कज्जली, सिंदूर, आदि) के निर्माण से संबंधित है। यह पारे को सबसे महत्वपूर्ण धातु मानता है।

रसपिष्टि (Raspishti)

  • अर्थ: “रस” (पारा) और “पिष्टि” (पिसा हुआ/पाउडर)।
  • परिभाषा: यह पारे की एक बारीक पिसी हुई (पाउडर) तैयारी है। पारा एक तरल धातु है, लेकिन विशेष हर्बल अर्क और पदार्थों (जैसे नींबू का रस, अदरक का रस, आदि) के साथ लंबे समय तक खरल में घोटने (मर्दन) पर यह एक ठोस, गैर-चमकदार, बारीक पाउडर में बदल जाता है। इस प्रक्रिया को पारे का “पिष्टीकरण” कहते हैं। यह पारे के शुद्धिकरण और दवा के रूप में उपयोग हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है।

निष्कर्ष: ये सभी शब्द प्राचीन भारतीय रसायन विज्ञान की जटिल और वैज्ञानिक शब्दावली का हिस्सा हैं, जो दर्शाते हैं कि धातुकर्म और रसायन विज्ञान का यह ज्ञान कितना सुव्यवस्थित और गहन था।