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पर्पटी कल्पना (Parrpati Kalpana)

१. पर्पटी कल्पना (Parrpati Kalpana)

भेषज निर्माण की एक उत्कृष्ट विधि (An Excellent Method of Pharmaceutical Preparation)

· परिभाषा (Definition): हेमाद्रि ग्रन्थ के अनुसार, “पर्पटी सा कठिना स्निग्धा च” – अर्थात, जो औषधि पर्पट (पापड़) के समान कठोर एवं स्निग्ध (चिकनी) हो, उसे पर्पटी कहते हैं।
· इतिहास (Historical Significance): यह कल्पना रसशास्त्र के विकास का एक प्रमुख चरण है। इसका उल्लेख प्रमुख रूप से रसेन्द्र चिन्तामणि एवं आनन्द कन्द जैसे ग्रन्थों में मिलता है। इसका प्रादुर्भाव पारद के सुरक्षित एवं प्रभावकारी प्रयोग हेतु हुआ।
· निर्माण सिद्धान्त (Manufacturing Principle): इसमें शुद्ध पारद एवं गन्धक को अन्य उपधातुओं (जैसे लौह, ताम्र) अथवा औषधीय द्रव्यों (जैसे बोल) के साथ एक मृदु अग्नि पर पिघलाया जाता है तथा इस द्रवित मिश्रण को एक समतल शिला (पट्टी) पर फैलाकर ठण्डा किया जाता है। इस प्रक्रिया से एक रासायनिक संयोग (Compound) बनता है जो विषैलापन रहित, सुप्रयोग्य एवं स्थिर होता है।
· चिकित्सीय महत्त्व (Therapeutic Importance): यह कल्पना भेषज के संशोधन (Shodhana – Purification), संहनन (Compactness), एवं मार्दव (Mardava – Particle size reduction) का कार्य करती है, जिससे औषध की जैवउपलब्धता (Bioavailability) बढ़ती है।


२. प्रमुख पर्पटी योग एवं उनके गुण-कर्म (Major Parrpati Formulations & Their Properties)

(क) रसपर्पटी (Rasaparrpati) – The Prototype

· संयोजन (Composition): शुद्ध पारद + शुद्ध गन्धक (क्रमशः १:१ अथवा १:२ भाग)।
· रस, गुण, वीर्य, विपाक (Rasa, Guna, Virya, Vipaka): कटु, उष्णवीर्य, कटु विपाक। लघु एवं स्निग्ध गुणयुक्त।
· प्रयोग (Indications):
· अर्श (Arshas): विशेषतः पित्त-कफज अर्शों में।
· गुल्म (Gulma): उदर में स्थित वातज ग्रन्थियों में।
· आमदोष (Ama Dosha): जठराग्नि की मन्दता एवं अपच के कारण उत्पन्न विषैले पदार्थों का शमन।
· मात्रा (Dosage): १-२ रत्ती (लगभग ६०-१२५ मि.ग्रा.), मधु या घृत के साथ।
· पथ्य-अपथ्य (Adjuvants & Contraindications):
· पथ्य: यवागू, लघु अन्न (जैसे चावल, मूंग दाल), उष्ण जल।
· अपथ्य: दही, अम्ल पदार्थ, अत्यन्त नमकीन वस्तुएँ, विरुद्ध आहार। इनसे रसाजीर्ण (Rasajirna) होने का भय रहता है।

(ख) लौहपर्पटी (Lauha Parrpati)

· मुख्य भस्म: लौह भस्म (Iron Bhasma) प्रधान है।
· गुण-कर्म: चक्षुष्य (नेत्रों के लिए हितकारी), पाण्डुनाशक (Anaemia), बल्य (Strength promoter), वर्ण्य (Complexion enhancer)।
· विशेष: पित्त प्रकृति के रोगियों में सावधानी से प्रयोग करें।

(ग) स्वर्णपर्पटी (Swarna Parrpati)

· मुख्य भस्म: स्वर्ण भस्म (Gold Bhasma) प्रधान है।
· गुण-कर्म: रसायन (Rejuvenative), वृष्य (Aphrodisiac), मेधाजनन (Intellect promoting), हृदय (Cardiotonic), दीपन (Appetizer)।
· विशेष指示: दुर्बलता, हृदयरोग, बुद्धि की कमी, और अतिशय क्षीणता में प्रयुक्त।

(घ) पञ्चामृत पर्पटी (Panchamrita Parrpati)

· संयोजन: स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह, वङ्ग (टिन) इन पाँच धातुओं की भस्म।
· गुण-कर्म: सर्वोत्तम रसायन। सर्वधातु पोषक। गुरु अतः अग्नि बल देखकर ही प्रयोग करें।

(ङ) बोलपर्पटी (Bol Parrpati)

· मुख्य द्रव्य: बोल (Commiphora myrrha) प्रधान है।
· गुण-कर्म: सङ्ग्राही (Astringent), शोथहर (Anti-inflammatory), योनिशूलहर (Uterine pain reliever), रक्तस्तम्भक (Hemostatic)।
· प्रयोग: प्रदर रोग (Leucorrhea), अतिसार (Diarrhea), योनि सम्बन्धी रोग।


३. रससिन्दूर एवं मकरध्वज (Ras Sindoor & Makardhwaj)

(क) रससिन्दूर (Ras Sindoor)

· स्थान: यह सभी मर्करीयल प्रिपेयरेशन्स का मूल है।
· गुण: रसायन, वाजीकरण, बल्य, आयुष्य। यह योगवाही है – अन्य द्रव्यों के प्रभाव को बढ़ाता है।

(ख) मकरध्वज (Makardhwaj) – The King of Formulations

· संयोजन: रससिन्दूर + स्वर्ण भस्म का विशिष्ट संस्कार।
· गुण-कर्म (Properties):
· दीपनपाचन: अग्नि को प्रदीप्त करता है।
· रसायन: वृद्धावस्था को रोकने वाला।
· वृष्य: शुक्रधातु का पोषण करने वाला।
· बल्य: शारीरिक बल को बढ़ाने वाला।
· मेधाकर: बुद्धि को तीक्ष्ण करने वाला।
· विपाक: मधुर। (अन्य पारद योगों के विपरीत)
· प्रयोग: महाक्षय (Severe consumptive diseases), शुक्रक्षय (Low sperm count/motility), हृदयदौर्बल्य (Cardiac weakness), सर्व प्रकार की दुर्बलता।
· सिद्धमकरध्वज: जो मकरध्वज शास्त्रोक्त विधि से निर्मित किया गया है, वही सिद्ध अर्थात Perfect है। इसके लक्षण हैं: चमकदार, भारी, एवं विशिष्ट गन्धयुक्त।


४. पारद संस्कार: बन्धन एवं भस्मीकरण (Parada Samskara: Bonding & Incineration)

· पारद बन्धन का उद्देश्य: मूर्च्छित (Murchhit) पारद अस्थिर एवं विषैला होता है। बन्धन प्रक्रिया द्वारा उसे बद्धपारद में परिवर्तित किया जाता है जो स्थिर, अवाष्पशील एवं निर्विष होता है।
· बद्धपारद के लक्षण (Signs of Well-Bonded Mercury):

  1. निस्नेह: चिकनाहट रहित।
  2. अपुनर्भव: पुनः तरल अवस्था में नहीं आता।
  3. रेखापूर्ण: इतना सूक्ष्म कि उंगली की रेखाओं में भर जाए।
    · पारद भस्म (Parada Bhasma):
    · लक्षण (Characteristics):
    · वरीतर परीक्षा: जल की सतह पर तैरने लगे (अतिसूक्ष्मता का चिन्ह)।
    · निष्चन्द्र: कोई धात्विक चमक नहीं।
    · अवकाश भेदन भस्म: इतना हल्का कि सूक्ष्म अवकाशों में प्रवेश कर जाए।
    · संग्रह विधि: भस्मीकरण के पश्चात, इसे वस्त्र से छानकर शीशी में संग्रहित किया जाता है।

५. सारांश (Summary for the Vaidya)

हे चिकित्सा छात्र, स्मरण रखें:

· शास्त्र सम्मत विधि ही सफल चिकित्सा का आधार है। हस्तलिखित निर्देशों का पालन करें।
· अग्निबल देखकर ही औषधि का प्रयोग करें। मन्दाग्नि वाले को पहले दीपन-पाचन कराएँ।
· मात्रा अल्प ही रखें। रसौषधियाँ बल की दृष्टि से गुरु होती हैं।
· पथ्य-अपथ्य का पालन औषधि की सफलता के लिए अत्यावश्यक है।
· रसाजीर्ण के लक्षणों (मुख में धातु का स्वाद, लार का अधिक आना) पर सतर्क रहें। ऐसी स्थिति में औषधि बंद कर विरेचन (Purgation) आदि पंचकर्म द्वारा शुद्धि करें।

इति रसशास्त्रं सम्पूर्णम्।