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पारद विकार चिकित्सा क्या है? (What is Parada Vikara Chikitsa?)

“पारद विकार चिकित्सा” (Parada Vikara Chikitsa) यह आयुर्वेद की एक विशिष्ट और उन्नत शाखा है जो पारद (पारा या Mercury) के विभिन्न विकारों (रोगों) और उनके उपचार से संबंधित है।

यह एक अत्यंत जटिल और विशेषज्ञता वाला विषय है, और इसका स्व-उपचार के लिए उपयोग करना बेहद खतरनाक हो सकता है क्योंकि पारा एक जहरीली धातु है। यह जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है।

आयुर्वेद में रसशास्त्र (भस्म और रसायन तैयार करने की कला) के अंतर्गत पारद को एक अत्यंत महत्वपूर्ण धातु माना गया है। इसे ‘महारस’ या ‘राजद्रव्य’ कहा जाता है। हालाँकि, इसका अनुचित या अशुद्ध तरीके से सेवन करने से शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न हो सकते हैं, जिन्हें “पारद दोष” या “पारद विकार” कहते हैं।

पारद विकार चिकित्सा इन्हीं विषाक्तताओं (Poisoning) और दुष्प्रभावों के निदान एवं उपचार की पद्धति है।

पारद विकार के प्रमुख कारण (Causes of Parada Vikara):

  1. अशुद्ध पारद का सेवन: बिना उचित प्रक्रिया (शोधन और मारण) के पारे का सेवन करना।
  2. अनुचित मात्रा: विशेषज्ञ की सलाह के बिना गलत खुराक लेना।
  3. अनुचित संयोजन: पारद को अन्य धातुओं या जड़ी-बूटियों के साथ गलत तरीके से मिलाकर लेना।
  4. अनुचित आहार-विहार: पारद युक्त औषधि लेते समय निर्धारित आहार (पथ्य) का पालन न करना।

पारद विकार के लक्षण (Symptoms of Mercury Poisoning):

पारद विकार के लक्षण शरीर में पारे के जमाव और उसके प्रभाव के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसे मर्क्युरिज़म (Mercurialism) कहा जाता है।

· पाचन तंत्र संबंधी: मुंह में धातु जैसा स्वाद, मसूड़ों में सूजन और खून आना, लार का अत्यधिक स्राव, पेट में दर्द, उल्टी, दस्त।
· तंत्रिका तंत्र संबंधी: कंपकंपी (ट्रेमर्स), चिंता, अनिद्रा, स्मृति हानि, सिरदर्द।
· त्वचा संबंधी: त्वचा पर चकत्ते, खुजली, अत्यधिक पसीना आना।
· गुर्दे संबंधी: किडनी खराब होना।
· अन्य: मांसपेशियों में कमजोरी, जोड़ों में दर्द।

पारद विकार चिकित्सा के सिद्धांत (Principles of Treatment):

आयुर्व�ेद के अनुसार, पारद विकार का उपचार मुख्य रूप से निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:

  1. निदान (Diagnosis): सबसे पहले रोगी के लक्षणों, पारद सेवन की history और दोषों के असंतुलन (विशेषकर वात दोष) का सही निदान करना।
  2. शोधन चिकित्सा (Detoxification Therapy): शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालना। इसमें पंचकर्म थेरेपी (वमन, विरेचन, बस्ती, नस्य, रक्तमोक्षण) की मदद ली जाती है।
  3. शमन चिकित्सा (Palliative Therapy): विशिष्ट जड़ी-बूटियों और औषधियों का उपयोग करके पारद के दुष्प्रभावों को शांत करना और शरीर की कार्यप्रणाली को पुनर्स्थापित करना।

पारद विकार में प्रयुक्त होने वाली कुछ औषधियाँ (Commonly Used Medicines):

· गंधक (Sulphur): पारद के विषैले प्रभाव को नष्ट करने के लिए गंधक युक्त औषधियाँ दी जाती हैं।
· हरितकी (Haritaki – Terminalia chebula)
· आमलकी (Amlaki – Indian Gooseberry)
· त्रिफला (Triphala)
· त्रिकटु (Trikatu – Piper longum, Piper nigrum, Zingiber officinale)
· लहसुन (Lasuna – Garlic)
· गुग्गुलु (Guggulu – Commiphora mukul)
· विभिन्न भस्म: स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म आदि का प्रयोग सहायक के रूप में किया जा सकता है।

अत्यंत महत्वपूर्ण चेतावनी (Extremely Important Warning):

· स्व-उपचार न करें: पारद और इससे जुड़ी औषधियाँ बेहद शक्तिशाली हैं। इन्हें बिना किसी योग्य और अनुभवी आयुर्वेदिक रसशास्त्र विशेषज्ञ (Vaidya) की देखरेख के कभी भी न लें।
· जहर नियंत्रण केंद्र पर संपर्क करें: यदि किसी में पारद विषाक्तता (Mercury Poisoning) के लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत नजदीकी अस्पताल या जहर नियंत्रण केंद्र (Poison Control Center) से संपर्क करें। आधुनिक चिकित्सा इसके लिए तत्काल उपचार (चेलेशन थेरेपी आदि) उपलब्ध करा सकती है।
· नकली उत्पादों से सावधान रहें: बाजार में मिलने वाले कई “पारद युक्त” उत्पाद नकली, अशुद्ध या खतरनाक हो सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

पारद विकार चिकित्सा आयुर्वेद का एक गहन और विशिष्ट क्षेत्र है जो पारद के दुष्प्रभावों को ठीक करने पर केंद्रित है। यह केवल एक प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा ही प्रबंधित किया जाना चाहिए। यदि आपको या किसी और को लगता है कि पारद विषाक्तता हो सकती है, तो तुरंत पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सक और आधुनिक चिकित्सा दोनों से सलाह लें।

सुरक्षा हमेशा पहली प्राथमिकता है।