मूषा (Musha) क्या है?

मूषा एक विशेष प्रकार का क्रूसिबल या पात्र होता है जिसमें धातुओं, खनिजों और रत्नों को उच्च ताप पर भस्म (ash) में बदला जाता है। इस प्रक्रिया को मारण (Maran) कहते हैं, जिससे पदार्थों की विषैलता खत्म होती है और उनके गुणकारी तत्व शरीर द्वारा आत्मसात किए जा सकते हैं।

आपकी सूची में दिए गए नाम मुख्यतः दो आधारों पर आधारित हैं:

  1. आकार एवं संरचना (जैसे: गोस्तनीमूषा, वृन्ताकमूषा)
  2. उपयोग की जाने वाली मिट्टी/सामग्री के गुण या रंग (जैसे: वज्रमूषा, श्वेतवर्ग)

प्रत्येक शब्द का विस्तृत अर्थ:

1. आकार एवं संरचना के आधार पर:

  • सामान्यमूषा (Samanya Musha): सबसे साधारण और सामान्य प्रकार का क्रूसिबल। इसका उपयोग सामान्य भस्मीकरण के लिए किया जाता है।
  • वज्रमूषा (Vajra Musha): यह बहुत मजबूत (हीरे की तरह कठोर) और टिकाऊ मूषा होती है। इसका उपयोग उच्च ताप सहन करने वाले और कठोर पदार्थों के भस्मीकरण के लिए किया जाता है।
  • गोस्तनीमूषा (Gostani Musha): इसका आकार गाय के थन (स्तन) जैसा होता है। इसमें एक मुख्य नली (निप्पल) होती है जिससे वाष्प या गैसें निकल सकती हैं।
  • वृन्ताकमूषा (Vrintaka Musha): इसका आकार बैंगन (वृन्ताक) के फल जैसा होता है।
  • योगमूषा (Yoga Musha): यह एक विशेष प्रकार की संयुक्त या यौगिक मूषा होती है, जिसे विशिष्ट प्रक्रियाओं के लिए डिजाइन किया गया होता है।

2. मिट्टी/सामग्री के गुण या रंग के आधार पर:

ये “वर्ग” (श्रेणियाँ) हैं, जिनमें से प्रत्येक में कई प्रकार की मूषाएँ बनाई जा सकती हैं। इनका रंग और गुण उन्हें बनाने में प्रयुक्त होने वाली मिट्टी और अन्य सामग्रियों पर निर्भर करता है।

  • तैलवर्ग (Taila Varga): इस श्रेणी की मूषाएँ तिल के तेल (तैल) और अन्य सामग्रियों से निर्मित की जाती हैं। ये चिकनी और तेलयुक्त गुण वाली होती हैं।
  • श्वेतवर्ग (Shweta Varga): इस श्रेणी की मूषाओं का रंग सफेद (श्वेत) होता है। इन्हें सफेद मिट्टी, चावल का छिलका, दूध आदि जैसी सफेद सामग्रियों से तैयार किया जाता है।
  • पीतवर्ग (Peeta Varga): इस श्रेणी की मूषाओं का रंग पीला (पीत) होता है। इनमें हल्दी, पीली मिट्टी, गेहूँ का छिलका आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • रक्तवर्ग (Rakta Varga): इस श्रेणी की मूषाओं का रंग लाल (रक्त) होता है। इन्हें लाल मिट्टी, ईंट का चूरा, लाल चंदन आदि से बनाया जाता है।
  • कृष्णवर्ग (Krishna Varga): इस श्रेणी की मूषाओं का रंग काला (कृष्ण) होता है। इनमें कोयला, लोहे का बुरादा, काले तिल आदि का प्रयोग होता है।
  • विट्वर्ग (Vit Varga): इस श्रेणी की मूषाएँ गोबर (विट) से संबंधित सामग्रियों से निर्मित की जाती हैं, जैसे गोबर की राख, गोबर से लिपाई आदि।

3. विशिष्ट प्रक्रियाओं के लिए प्रयुक्त मूषाएँ:

  • पक्कमूषा (Pakka Musha): इसका अर्थ “पक्की हुई या पकाई गई मूषा” से है। यह एक ऐसी मूषा है जिसे पहले से ही उच्च ताप पर पकाया जा चुका होता है ताकि यह और अधिक मजबूत बन सके।
  • वज्रद्रावणीमूषा (Vajra Draavani Musha): यह एक विशेष मूषा है जिसका उपयोग पारे (पारद) को द्रवित (पिघलाने/शुद्ध करने) के लिए किया जाता है। ‘वज्र’ का अर्थ है कठोर और ‘द्रावणी’ का अर्थ है पिघलाने वाली।
  • पारद जारणार्थ विड (Parada Jaranarth Vid): यह कोई मूषा नहीं है, बल्कि पारे की जारण प्रक्रिया (सल्फ्यूरेशन) के लिए इस्तेमाल होने वाला एक विशेष प्रकार का बर्तन (विड) होता है। जारण वह प्रक्रिया है जिसमें पारे की विषैलता को खत्म करने के लिए उसे सल्फर या अन्य धातुओं के साथ गर्म किया जाता है।

सारांश:

आपकी दी गई सूची आयुर्वेदिक धातुविज्ञान में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न प्रकार के क्रूसिबलों (मूषा) और उनकी श्रेणियों (वर्ग) का एक संग्रह है। प्रत्येक का निर्माण, आकार और उपयोग विशिष्ट खनिज, धातु या प्रक्रिया की आवश्यकताओं के अनुरूप किया गया है।

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