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क्रिया शरीर (Kriya Sharir)

क्रिया शरीर आयुर्वेद का एक प्रमुख शाखा है जो मानव शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली का अध्ययन करती है। इसे आयुर्वेदिक शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) के रूप में भी जाना जाता है, जो शरीर के विभिन्न तंत्रों (जैसे पाचन, श्वसन, रक्तसंचार, तंत्रिका तंत्र आदि) के सामान्य कार्यों को समझाता है।

क्रिया शरीर के प्रमुख सिद्धांत:

  1. त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) – शरीर की समस्त क्रियाएँ इन तीन दोषों के संतुलन पर निर्भर करती हैं।
  2. सप्त धातु (रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र) – शरीर के ऊतकों का निर्माण व पोषण।
  3. अग्नि (जठराग्नि व धात्वग्नि) – भोजन के पाचन, अवशोषण व उपयोग की प्रक्रिया।
  4. मल (मूत्र, पुरीष, स्वेद) – शरीर से विषाक्त पदार्थों का निष्कासन।
  5. प्रकृति (व्यक्तिगत शारीरिक संरचना) – वात, पित्त या कफ प्रधान शरीर के अनुसार कार्यविधि।
  6. ओजस, तेजस, प्राण – शरीर की सूक्ष्म ऊर्जाएँ जो स्वास्थ्य व प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करती हैं।

आधुनिक शरीर क्रिया विज्ञान से तुलना:

आधुनिक विज्ञान शरीर की क्रियाओं को एनाटॉमी व बायोकेमिस्ट्री के आधार पर समझाता है, जबकि क्रिया शरीर इसे दोष, धातु व मल के संतुलन के रूप में देखता है।

महत्व:

  • रोगों का कारण व निदान दोष असंतुलन से समझना।
  • दिनचर्या व ऋतुचर्या द्वारा स्वस्थ जीवनशैली का मार्गदर्शन।
  • आयुर्वेदिक चिकित्सा (जैसे पंचकर्म, औषधि) का वैज्ञानिक आधार।