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कायचिकित्सा (आयुर्वेदिक अंतर्चिकित्सा)


1. कायचिकित्सा का परिचय

  • परिभाषा:
  • “काय” = शरीर, “चिकित्सा” = उपचार
  • यह आयुर्वेद की वह शाखा है जो आंतरिक रोगों के निदान एवं उपचार से संबंधित है।
  • विषय-क्षेत्र:
  • त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) के संतुलन और अग्नि (पाचन शक्ति) सुधार पर केंद्रित।
  • रोकथाम (स्वस्थवृत्त) और उपचार (रोगप्रशमन) दोनों पर जोर।

2. मूलभूत सिद्धांत

A. त्रिदोष सिद्धांत एवं रोगपैदा होने की प्रक्रिया (सम्प्राप्ति)

  • दोष असंतुलन → आम (विषैले तत्व) → रोग
  • रोग के छह अवस्थाएँ (षट् क्रियाकाल):
  1. संचय (दोष जमाव)
  2. प्रकोप (बढ़ोतरी)
  3. प्रसार (शरीर में फैलाव)
  4. स्थान संश्रय (अंग विशेष में स्थिर होना)
  5. व्यक्ति (लक्षण प्रकट होना)
  6. भेद (जटिलताएँ)

B. अग्नि (पाचन शक्ति) की भूमिका

  • अग्नि के प्रकार:
  • जठराग्नि (मुख्य पाचन अग्नि)
  • धात्वग्नि (धातुओं का पोषण)
  • भूताग्नि (पंचमहाभूतों का पाचन)
  • अग्निमांद्य → आम → रोग

3. रोग निदान की विधियाँ (निदान पंचक)

  1. निदान (कारण) – रोग का मूल (जैसे: अनुचित आहार)।
  2. पूर्वरूप (प्रारंभिक लक्षण) – रोग के संकेत।
  3. रूप (मुख्य लक्षण) – स्पष्ट लक्षण।
  4. उपशय (राहत देने वाले कारक) – क्या लाभ/हानि पहुँचाता है।
  5. सम्प्राप्ति (रोग विकास की प्रक्रिया)।

4. उपचार पद्धतियाँ (चिकित्सा सूत्र)

A. शोधन चिकित्सा (पंचकर्म)

चिकित्सासंतुलित दोषउपयोग
वमन (उल्टी)कफदमा, मधुमेह, त्वचा रोग
विरेचन (दस्त)पित्तपित्त विकार, सोरायसिस
बस्ति (एनिमा)वातजोड़ों का दर्द, कब्ज
नस्य (नाक से दवा)कफ/वातसाइनस, माइग्रेन
रक्तमोक्षण (खून निकालना)पित्तएक्जिमा, गठिया

B. शमन चिकित्सा (लक्षण नियंत्रण)

  • जड़ी-बूटियाँ (गिलोय, अश्वगंधा, त्रिफला)
  • आहार-विहार में सुधार
  • योग एवं प्राणायाम

C. रसायन चिकित्सा (कायाकल्प)

  • प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले (च्यवनप्राश, आमलकी रसायन)
  • वृद्धावस्था रोकथाम (अश्वगंधा, शतावरी)

5. प्रमुख रोग एवं आयुर्वेदिक उपचार

रोगआयुर्वेदिक नामसंबंधित दोषउपचार
मधुमेहप्रमेहकफ/वातविरेचन, शिलाजीत
गठियाआमवातवात-कफबस्ति, गुग्गुलु
सोरायसिसएककुष्ठपित्त-कफवमन, खदिरारिष्ट
पेट की गड़बड़ीग्रहणीवात-पित्तहिंग्वाष्टक चूर्ण
उच्च रक्तचापरक्त गत वातवात-पित्तसर्पगंधा, अर्जुन

6. प्रमुख आयुर्वेदिक योग

  • त्रिफला (पाचन, डिटॉक्स)
  • यष्टिमधु (खांसी, अल्सर)
  • दशमूल (दर्द, सूजन)
  • अरोग्यवर्धिनी (लीवर)
  • कैशोर गुग्गुलु (जोड़ों का दर्द)

7. आधुनिक युग में कायचिकित्सा की प्रासंगिकता

  • एलोपैथी के साथ एकीकृत उपचार (मधुमेह, गठिया में)।
  • वैज्ञानिक शोध:
  • हल्दी (करक्यूमिन) – सूजन में प्रभावी।
  • अश्वगंधा – तनाव नियंत्रण।

8. महत्वपूर्ण ग्रंथ

  • चरक संहिता (कायचिकित्सा का मुख्य ग्रंथ)
  • अष्टांग हृदयम् (वाग्भट्ट)
  • माधव निदान (रोग निदान)

परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण टिप्स:

निदान पंचक, षट् क्रियाकाल और पंचकर्म पर ध्यान दें।
योगों के नाम और उपयोग याद रखें।
केस स्टडी विश्लेषण का अभ्यास करें।