
द्रव्यगुण शास्त्र आयुर्वेद का एक प्रमुख अंग है जो औषधीय पदार्थों (मुख्यतः जड़ी-बूटियों) के गुण, कर्म एवं चिकित्सीय उपयोग का अध्ययन करता है। यह रस, गुण, वीर्य, विपाक और प्रभाव के माध्यम से दवाओं की फार्माकोडायनामिक्स (कर्म) और फार्माकोकाइनेटिक्स (पाचन, अवशोषण, प्रभाव) को समझाता है।
द्रव्यगुण के मुख्य घटक:
- रस (स्वाद):
- द्रव्य का प्राथमिक स्वाद (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय)।
- शरीर पर तत्काल प्रभाव (जैसे, मधुर बलवर्धक, तिक्त विषघ्न)।
- गुण (औषधीय गुण):
- भौतिक एवं औषधीय विशेषताएँ (गुरु-लघु, स्निग्ध-रूक्ष, उष्ण-शीत)।
- पाचन, मेटाबॉलिज्म और धातु पोषण को प्रभावित करते हैं।
- वीर्य (शक्ति/प्रभावशाली ऊर्जा):
- उष्ण या शीत प्रभाव (जैसे, अदरक उष्ण वीर्य से पाचन बढ़ाता है, चंदन शीत वीर्य से सूजन घटाता है)।
- विपाक (पाचन के बाद प्रभाव):
- पाचन के बाद द्रव्य का अंतिम परिणाम (मधुर, अम्ल, कटु)।
- दीर्घकालिक धातु पोषण पर प्रभाव डालता है।
- प्रभाव (अद्वितीय औषधीय क्रिया):
- रस-गुण-वीर्य-विपाक से परे विशेष प्रभाव (जैसे, तुलसी की रोगाणुरोधी क्षमता)।
द्रव्यगुण के अन्य पहलू:
- पहचान (प्रत्यक्ष एवं परीक्षा):
- जड़ी-बूटियों की वानस्पतिक पहचान।
- संग्रह (संग्रहण काल):
- ऋतु अनुसार संग्रह (जड़ें शीतकाल में, पत्ते वसंत में)।
- भंडारण एवं संरक्षण:
- द्रव्यों को खराब होने से बचाने के उपाय (सुखाकर, चूर्ण बनाकर, घी/शहद में रखकर)।
आयुर्वेद में महत्व:
- रोगानुसार सही द्रव्य चयन (जैसे, अश्वगंधा बल के लिए, हरितकी शोधन के लिए)।
- औषध निर्माण (चूर्ण, क्वाथ, आसव-अरिष्ट) में मार्गदर्शन करता है।
- सुरक्षित एवं प्रभावी उपयोग (दोष-धातु-मल संतुलन बनाए रखते हुए)।
निष्कर्ष:
द्रव्यगुण शास्त्र आयुर्वेदिक मटेरिया मेडिका (औषधीय पदार्थों का विज्ञान) है, जो प्राचीन ज्ञान को चिकित्सा में व्यवहारिक रूप देता है। यह सुनिश्चित करता है कि जड़ी-बूटियों का उपयोग सही मात्रा, गुण और संयोजन में हो, ताकि शरीर में संतुलन बना रहे।