
संहिता-सिद्धांत आयुर्वेद का सबसे महत्वपूर्ण विभाग है, जो आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों के अध्ययन से सम्बंधित है। यह विभाग प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों (चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग हृदय आदि) में वर्णित बुनियादी सिद्धांतों की व्याख्या, शोध और प्रमाणिकता पर कार्य करता है।
संहिता एवं सिद्धांत विभाग के प्रमुख कार्यक्षेत्र:
- प्राचीन संहिताओं का अध्ययन
- चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट आदि आचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों का गहन अध्ययन एवं व्याख्या।
- पंचमहाभूत, त्रिदोष (वात-पित्त-कफ), सप्तधातु, अग्नि, ओजस जैसे मूलभूत सिद्धांतों की समझ।
- सिद्धांतों की वैज्ञानिक व्याख्या
- आयुर्वेद के दार्शनिक एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों (न्याय, प्रमाण, युक्ति) का विश्लेषण।
- पारंपरिक ज्ञान को तर्क और अनुसंधान के माध्यम से सिद्ध करना।
- तुलनात्मक अध्ययन एवं शोध
- विभिन्न संहिताओं में वर्णित सिद्धांतों की तुलना।
- आधुनिक विज्ञान के साथ आयुर्वेद के सिद्धांतों का सामंजस्य स्थापित करना।
- आयुर्वेद ज्ञान का संरक्षण एवं प्रसार
- मौलिक सिद्धांतों की शुद्धता बनाए रखना ताकि भविष्य की पीढ़ियों तक सही ज्ञान पहुँचे।
- आयुर्वेदिक शिक्षा को मानकीकृत करने में सहायता करना।
आयुर्वेदिक शिक्षा में महत्व:
- बी.ए.एम.एस. (BAMS) के प्रथम वर्ष में यह प्रथम प्रोफ़ (प्रथम वर्ष का मुख्य विषय) होता है।
- इसके बिना कायचिकित्सा, शल्यतंत्र, पंचकर्म जैसे क्लिनिकल विषयों की समझ अधूरी रहती है।
- आयुर्वेदिक शोध में मार्गदर्शक का कार्य करता है।
आधुनिक समय में प्रासंगिकता:
- एविडेंस-बेस्ड आयुर्वेद के इस युग में, यह विभाग पारंपरिक ज्ञान को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ जोड़ने में सहायक है।
निष्कर्ष:
संहिता-सिद्धांत विभाग, आयुर्वेद की जड़ें (मूल आधार) हैं, जो ऋषियों के ज्ञान को आज भी प्रासंगिक बनाए हुए हैं। यह न केवल शास्त्रीय ज्ञान को सुरक्षित रखता है, बल्कि इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध भी करता है।