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द्रव्यगुण शास्त्र: आयुर्वेद की औषधीय विज्ञान

द्रव्यगुण के मुख्य घटक:

  1. रस (स्वाद):
  • द्रव्य का प्राथमिक स्वाद (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय)।
  • शरीर पर तत्काल प्रभाव (जैसे, मधुर बलवर्धक, तिक्त विषघ्न)।
  1. गुण (औषधीय गुण):
  • भौतिक एवं औषधीय विशेषताएँ (गुरु-लघु, स्निग्ध-रूक्ष, उष्ण-शीत)।
  • पाचन, मेटाबॉलिज्म और धातु पोषण को प्रभावित करते हैं।
  1. वीर्य (शक्ति/प्रभावशाली ऊर्जा):
  • उष्ण या शीत प्रभाव (जैसे, अदरक उष्ण वीर्य से पाचन बढ़ाता है, चंदन शीत वीर्य से सूजन घटाता है)।
  1. विपाक (पाचन के बाद प्रभाव):
  • पाचन के बाद द्रव्य का अंतिम परिणाम (मधुर, अम्ल, कटु)।
  • दीर्घकालिक धातु पोषण पर प्रभाव डालता है।
  1. प्रभाव (अद्वितीय औषधीय क्रिया):
  • रस-गुण-वीर्य-विपाक से परे विशेष प्रभाव (जैसे, तुलसी की रोगाणुरोधी क्षमता)।

द्रव्यगुण के अन्य पहलू:

  • पहचान (प्रत्यक्ष एवं परीक्षा):
  • जड़ी-बूटियों की वानस्पतिक पहचान।
  • संग्रह (संग्रहण काल):
  • ऋतु अनुसार संग्रह (जड़ें शीतकाल में, पत्ते वसंत में)।
  • भंडारण एवं संरक्षण:
  • द्रव्यों को खराब होने से बचाने के उपाय (सुखाकर, चूर्ण बनाकर, घी/शहद में रखकर)।

आयुर्वेद में महत्व:

  • रोगानुसार सही द्रव्य चयन (जैसे, अश्वगंधा बल के लिए, हरितकी शोधन के लिए)।
  • औषध निर्माण (चूर्ण, क्वाथ, आसव-अरिष्ट) में मार्गदर्शन करता है।
  • सुरक्षित एवं प्रभावी उपयोग (दोष-धातु-मल संतुलन बनाए रखते हुए)।

निष्कर्ष:

द्रव्यगुण शास्त्र आयुर्वेदिक मटेरिया मेडिका (औषधीय पदार्थों का विज्ञान) है, जो प्राचीन ज्ञान को चिकित्सा में व्यवहारिक रूप देता है। यह सुनिश्चित करता है कि जड़ी-बूटियों का उपयोग सही मात्रा, गुण और संयोजन में हो, ताकि शरीर में संतुलन बना रहे।