
स्वस्थवृत्त आयुर्वेद का एक प्रमुख शाखा है जो निवारक स्वास्थ्य (Preventive Healthcare), स्वास्थ्य संरक्षण और स्वस्थ जीवनशैली के सिद्धांतों पर केंद्रित है। यह शब्द दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है:
- “स्वस्थ” – अर्थात “शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से संतुलित”
- “वृत्त” – अर्थात “आचरण या जीवनशैली”
स्वस्थवृत्त के प्रमुख सिद्धांत:
- दिनचर्या (Dinacharya – दैनिक आहार-विहार):
- प्रातः जल्दी उठना (ब्रह्म मुहूर्त में जागरण)
- दंतधावन, जिह्वा शोधन, आंखों की स्वच्छता
- व्यायाम, अभ्यंग (तेल मालिश), स्नान
- संतुलित आहार एवं समय पर भोजन
- ऋतुचर्या (Ritucharya – मौसमानुसार जीवनशैली):
- गर्मी (ग्रीष्म) में ठंडक देने वाले आहार (दही, छाछ, फल)
- सर्दी (हेमंत) में गर्म व पौष्टिक भोजन (गुड़, घी, ड्राई फ्रूट्स)
- वर्षा ऋतु (वर्षा) में हल्का व सुपाच्य आहार
- सात्विक आहार (Ahara – संतुलित आहार):
- ताजा, प्राकृतिक व मौसमी भोजन
- अधिक तला-भुना, मसालेदार व फास्ट फूड से परहेज
- भोजन के समय मन को शांत रखना
- मानसिक स्वास्थ्य (Manasika Swasthya):
- योग, ध्यान (मेडिटेशन), प्राणायाम द्वारा तनाव नियंत्रण
- क्रोध, लालच, ईर्ष्या जैसे नकारात्मक भावों से बचना
- व्यायाम एवं निद्रा (Vyayama & Nidra):
- प्रतिदिन हल्का-फुल्का व्यायाम (योगासन, सैर)
- रात को समय पर सोना (7-8 घंटे की नींद)
- सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health):
- स्वच्छ जल (जल शुद्धि), शुद्ध वायु (वायु शुद्धि)
- आसपास की स्वच्छता (वातावरण शुद्धि)
स्वस्थवृत्त का महत्व:
- रोगों से बचाव करता है।
- शरीर, मन और आत्मा को संतुलित रखता है।
- प्राकृतिक जीवनशैली को बढ़ावा देता है।
- आयुर्वेद में इसे “अरोग्य का मूलमंत्र” माना गया है।
प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख:
- चरक संहिता – दिनचर्या व ऋतुचर्या का विस्तृत वर्णन
- सुश्रुत संहिता – स्वच्छता व निवारक चिकित्सा पर जोर
- अष्टांग हृदयम् – आहार-विहार के नियम
आधुनिक युग में प्रासंगिकता:
- WHO के “Health is a state of complete physical, mental and social well-being” की अवधारणा से मेल खाता है।
- आज भी योग, आयुर्वेदिक डाइट और नेचुरोपैथी में इसका उपयोग होता है।
निष्कर्ष:
स्वस्थवृत्त केवल रोगों का इलाज नहीं, बल्कि उन्हें होने से रोकने की कला है। यह प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीने का विज्ञान है।