
रोग निदान एवं विकृति विज्ञान आयुर्वेद का एक प्रमुख शाखा है जो रोगों की पहचान (निदान) और शरीर में होने वाले विकृत परिवर्तनों के अध्ययन (विकृति विज्ञान) से संबंधित है। यह आयुर्वेदिक परीक्षण पद्धतियों को आधुनिक जाँच विधियों के साथ जोड़कर रोगों का सटीक विश्लेषण करता है।
मुख्य विषय-क्षेत्र:
1. रोग निदान (Diagnosis)
आयुर्वेद में रोगों की पहचान के लिए निम्न विधियाँ प्रयोग की जाती हैं:
(क) त्रिविध परीक्षा (Threefold Examination)
- दर्शन (Inspection): रोगी के शरीर का रंग, सूजन, चमड़ी की स्थिति आदि देखकर निदान।
- स्पर्शन (Palpation): नाड़ी परीक्षण (पल्स), शरीर का तापमान, दर्द आदि जाँचना।
- प्रश्न (Questioning): रोगी से उसके लक्षणों, आहार-विहार और पुरानी बीमारियों के बारे में पूछताछ।
(ख) अष्टविध परीक्षा (Eightfold Examination)
- नाड़ी (पल्स डायग्नोसिस) – वात, पित्त, कफ का अनुमान।
- मूत्र (यूरिन टेस्ट) – रंग, गंध, घनत्व देखकर दोष ज्ञात करना।
- मल (स्टूल टेस्ट) – पाचन तंत्र की स्थिति जानना।
- जिह्वा (टंग एग्जामिनेशन) – मोटाई, रंग, कोटिंग देखना।
- शब्द (आवाज की जाँच) – कमजोर या भारी आवाज से अंदाज़ा।
- स्पर्श (स्किन टेक्सचर) – रूखापन, गर्मी-ठंडक।
- दृक (आँखों की जाँच) – पीलापन, लालिमा, सूजन।
- आकृति (शरीर की बनावट) – दुबलापन, मोटापा, सूजन।
2. विकृति विज्ञान (Pathology)
आयुर्वेद के अनुसार, रोग उत्पन्न होने का कारण दोषों (वात, पित्त, कफ) का असंतुलन और धातुओं (रस, रक्त, मांस आदि) का दूषित होना है।
रोग विकास के छः चरण (षट् क्रियाकाल)
- संचय (Accumulation): दोष एक जगह जमा होना।
- प्रकोप (Aggravation): दोष बढ़कर असंतुलित होना।
- प्रसार (Spread): दोष शरीर में फैलना।
- स्थान संश्रय (Localization): दोष कमजोर अंग में जमा होना।
- व्यक्तावस्था (Manifestation): रोग के लक्षण दिखाई देना।
- भेदावस्था (Complications): रोग जटिल रूप ले लेना।
3. आधुनिक जाँच विधियों का समावेश
आजकल, आयुर्वेदिक निदान को और सटीक बनाने के लिए ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट, एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड जैसी आधुनिक तकनीकों का भी उपयोग किया जाता है, जैसे:
- मधुमेह (Diabetes) → ब्लड शुगर टेस्ट
- अमावात (Arthritis) → ESR, CRP टेस्ट
- यकृत विकार (Liver Disorders) → LFT (Liver Function Test)
महत्व:
- रोग की सही पहचान कर उचित इलाज (चिकित्सा) करने में सहायक।
- रोकथाम (प्रिवेंटिव मेडिसिन) में मददगार, क्योंकि दोष असंतुलन शुरुआत में ही पकड़ा जा सकता है।
- पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा का समन्वय करता है।