काय चिकित्सा

Prof. Dr. Satish Kumar Panda

MD (Ay), PhD

Principal- Kritika Ayurvedic Medical College & Hospital, Bareilly, Uttar Pradesh.

आयुर्वेद में काय चिकित्सा (आंतरिक चिकित्सा) एक प्रमुख शाखा है, जिसमें शारीरिक एवं मानसिक रोगों के निदान, उपचार और प्रबंधन पर विस्तृत चर्चा की गई है। आपके द्वारा दिए गए विषयों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है:


1. काय चिकित्सा के मूल सिद्धांत

  • चिकित्सा चतुष्पाद: चिकित्सा के चार आधार— वैद्य, औषध, परिचारक और रोगी।
  • रोगी-रोग परीक्षा: रोगी के दोष (वात, पित्त, कफ), धातु (शारीरिक ऊतक), मल (विषाक्त पदार्थ) और अग्नि (पाचन शक्ति) का विश्लेषण।
  • ओज: शरीर की जीवन शक्ति, जिसका क्षय रोग का कारण बनता है।

2. दोष सिद्धांत एवं रोग उत्पत्ति

  • धातु-मल वृद्धि/क्षय: धातुओं (रस, रक्त, मांस आदि) और मल (विषाक्त पदार्थों) का असंतुलन।
  • साम-निराम दोष: आम (अपचित विषाक्त पदार्थ) से जुड़े या निराम (शुद्ध) दोष।
  • स्थानांतर/लीन दोष: दोषों का स्थानांतरण या छिपे हुए रूप में होना।

3. चिकित्सा के प्रकार

  • रोगानुत्पत्तिकर चिकित्सा: रोग की जड़ को समाप्त करना (मूल कारण उपचार)।
  • रोग प्रशमन चिकित्सा: लक्षणों को शांत करना।
  • द्विविधोपक्रम: शरीर को शोधन (शुद्धिकरण) और शमन (शांत करना) करने वाली चिकित्सा।

4. उपचार विधियाँ

  • शोधन (पंचकर्म): वमन, विरेचन, बस्ति आदि।
  • निदान परिवर्जन: रोग के कारणों से बचाव।
  • औषध सेवन काल: दवा का समय (प्रातः, सायं आदि)।
  • अनुपान: दवा के साथ लिया जाने वाला सहायक पदार्थ (जैसे शहद, घी)।

5. पथ्य-अपथ्य (आहार-विहार)

  • पथ्य: रोगानुसार उपयुक्त आहार (जैसे वात रोग में गर्म भोजन)।
  • अपथ्य: हानिकारक आहार (जैसे अम्लीय पदार्थ पित्त विकार में)।

6. मानसिक स्वास्थ्य एवं विशेष विकार

  • मानसिक रोग: मन के त्रिदोष (रजस, तमस, सत्व) का असंतुलन।
  • अल्जाइमर, निद्रा विकार: मेधा धातु (मस्तिष्क ऊतक) का क्षय।
  • वार्धक्यजन्य विकार: उम्र से संबंधित रोग (जैसे जोड़ों का दर्द)।

7. आधुनिक संदर्भ में आयुर्वेद

  • पोषण की कमी: धातु क्षय (जैसे आयरन की कमी से रक्ताल्पता)।
  • आनुवांशिक/पर्यावरणीय कारक: दोष प्रकृति और जीवनशैली का प्रभाव।
  • औषधीय/आहार एलर्जी: दोष विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ (जैसे पित्त प्रकृति वालों को मसूर की दाल से एलर्जी)।

निष्कर्ष

काय चिकित्सा का उद्देश्य दोष-दूष्य-विश्लेषण (दोष, धातु, मल) के आधार पर रोग का समग्र उपचार करना है। इसमें आहार, औषधि, पंचकर्म और मानसिक संतुलन सभी को सम्मिलित किया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *